Tuesday 11 January 2022

जल लोटे का ही अच्छा/ Jal lote ka hi achchha

 जल लोटे का ही अच्छा



जानिए #लोटा और #गिलास के पानी में अंतर.........

#भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नहीं है, ये गिलास जो है #विदेशी है।

गिलास भारत का नहीं है। गिलास #यूरोप से आया और यूरोप में #पुर्तगाल से आया था। ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे तभी से गिलास में हम फँस गये।

गिलास अपना नहीं है, अपना लोटा है। और लोटा कभी भी #एकरेखीय नहीं होता। तो #वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका #त्याग कीजिये, वो काम के नही हैं। इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नहीं माना जाता। लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है। इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे।

फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है 

कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमें वैसे ही #गुण आते हैं। पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं। 

जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं. #दही में मिला दो तो #छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा। 

दूध में मिलाया तो #दूध का गुण। लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा। अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा। और अगर थोड़ा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का #सरफेस_टेंशन कम रहता है। क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा। तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा। और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है। यदि ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है, क्योंकि उसमें #शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है।

गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है। 


इसी तरह #कुए का पानी

कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है। आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी #साधू #संत कुए का ही पानी पीते है. न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे. वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है, सरफेस टेंशन कम है। और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है। जो नीचे चित्र में दिखाई गई है।



सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है. पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है, आपकी #बड़ी_आंत है और #छोटी_आंत है, 

आप जानते हैं कि उसमें #मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है। पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है। ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो। अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है।


दूसरे तरीके से समझें, 

आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा #दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये। तो वो रुई काली हो जाएगी। स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी। इसे दूध बाहर लेकर आया। अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है। तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है।

इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी। और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया। यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है। आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया। जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई। अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि #तनाव बढेगा। तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है। अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा #भगन्दर, #बवासीर, मुल्व्याद जैसी सेंकडो पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा।

इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए। इसलिए लौटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है। गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा। नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है। क्योंकि #नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है। नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है।

अगर #प्रकृति में देखेंगे तो #बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है। मतलब सभी #बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका #सरफेस टेंशन बहुत कम होता है।

तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीयें।

तो लोटे ही घर में लायें।

गिलास का प्रयोग बंद कर दें। जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लौटे बनाने वाले #कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गयी। गाँव गाँव में कसेरे कम हो गये, वो #पीतल और #कांसे के लौटे बनाते थे।

सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गये। 

तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लोटे वापिस लाइए।

Friday 7 January 2022

Shishir Ritucharya/ शिशिर ऋतुचर्या

 शिशिर ऋतुचर्या



इस संसार में वर्ष रुपी काल को छः ऋतुओं में विभाजित किया गया है। भारत वर्ष की यह खूबी है कि यहाँ हमें आयुर्वेद में वर्णित सभी 6 ऋतुओं का सम्यक ज्ञान होता है -शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद एवं हेमंत।

हेमंत ऋतु के पश्चात शिशिर ऋतु का आगमन होता है। लोक चाल कि भाषा में कहें तो शिशिर ऋतु को पतझड़ एवं सर्दी के नाम से जाना जाता है। सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण का हो जाते हैं, अर्थात विसर्ग काल का अंत और आदान काल का प्रारंभ हो जाता है। आयुर्वेद मतानुसार इस ऋतु में कफ दोष का संचय होता है, अग्नि तीव्र होती है तथा मनुष्य का शारीरिक बल श्रेष्ठ होता है।

लक्षण-

उत्तर दिशा से ठण्डी वायु चलती है। मेघ, रूक्ष वायु व वर्षा के कारण अधिक शीत व रूक्षता होती है। जलाशयों में बर्फ तथा नदियों में वाष्प निकलती दिखायी पड़ती है। लोघ्र, प्रियांशु, नागकेशर आदि के खिले सुन्दर पुष्प दिखायी पड़ते हैं। यदा कदा वर्षा भी देखी जा सकती है।

समय- 

संवत्सर में माघादि बारह मास होते हैं। दो-दो मास की एक ऋतु मानी जाती है। इस तरह एक वर्ष में  6 ऋतुएँ बनती हैं। माघ एवं फाल्गुन मास (मध्य जनवरी से मध्य मार्च) में शिशिर ऋतु बनती है।

संभावित रोग – 

वातिक व वात-कफज रोग यथा-ज्वर (सर्दी-बुखार) कास (खांसी), श्वास पक्षाधात, अर्दित, प्रतिश्याय (जुखाम), पैर में बिवाई फटना, दमा, त्वचा में रूखापन होना आदि।

पथ्य कर आहार-विहार-

शिशिर ऋतु में मनुष्यों की जठराग्नि प्रबल रहती है। यदि अग्नि बल के अनुसार अन्न न किया जाए तो अग्नि शरीर के सौम्य भाग को नष्ट करने लगती है। इसलिए शीत काल के शीत गुण के बढ़ने से वायु बढती है। इस वायु वृस्शी को रोकने हेतु-

अग्नि के तीव्र होने के कारण मधुर, अम्ल, लवण रसोयुक्त- गुरू व स्निग्ध आहार का सेवन करना चाहिए। विविध प्रकार के मेवों से बने पकवान , मेवा मिश्रित लड्डू, तिल, घृत, तेल, सैन्धव लवण, मूंगदाल, अदरक, लहसुन, प्याज, गर्म दूध, तेल अभ्यंग, ऊनी एवं गर्म वस्त्र पहनना आदि। औदक (मछली), आनूप (सुअर) आदि मेदस्वी जीवो का मांस रस तथा प्रसह (कौआ) विलेशय (गोधा) आदि पक्षियों का मांस भूनकर खाना चाहिए। दुग्ध विकार (दुग्ध, खोया, पनीर, मिठाईयाँ); इक्षु विकार (गुड़, चीनी, राव); नवीन धान्य (गेहूँ, चावल); नवीन मद्य (मदिरा, सीधु); वसा; तेल; उष्ण जल आदि का सेवन करना चाहिए। स्वस्थ नारी के साथ इच्छानुसार मैथुन किया जा सकता है।



अपथ्यकर आहार-विहार–

अधिक तले भुने खाद्य पदार्थ, वातकारकभोजन, शीत पेय पदार्थ, वर्षा में भीगना आदि/कटु, तिक्त कषाय रसो युक्त, वातल, लघु, शीतल अन्नपान व अल्पाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। इस ऋतु में बच्चों को श्वास (निमोनिया) होने की सम्भावना होती है। यदि बच्चे की साँस तेज चलने की शिकायत हो तो तुरंत वैद्यकीय सलाह लें। इस मौसम में बाहरी खान पान, फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, ब्रेड, टोस्ट, चिप्स, चोकोलेट, आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक आदि बच्चों को कम खाने दें। इस ऋतु में फंगल इन्फेक्शन का प्रकोप भी खूब तेजी से फैलता है, इससे बचाव हेतु शरीर के अंगों को सूखा एवं स्वच्छ रखें। बासी भोजन करने से बचें। सदा ताज़ा बना गर्म भोजन करें।

Thursday 10 May 2018

ग्रीष्म ऋतुचर्या



मई माह शुरु हो चुका है। धूप की तपिश बढ़ती ही जा रही है। सुबह से ही जानलेवा गर्मी पड़ने लगी है, अतः आप सभी के लिये कुछ उपयोगी, आसानी से करने योग्य उपाय प्रस्तुत है-
* लू चल रही हो तब बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलें।
* सिर पर कपड़ा(गमछा) लपेट कर या छाता लगा कर बाहर निकलें। धूप में घूमते हुए ठण्डा पानी या पेय पदार्थ न पीएं।
* घर से निकलते समय एक गिलास ठण्डा पानी पी लें और जेब में एक प्याज रख लें। ऐसा करने से लू नहीं लगेगी।
* वापस घर को आएं तो तुरन्त ठण्डा पानी न पीएं, थोड़ी देर रुक कर शरीर को ठण्डा कर पानी पीएं। एक समय में एक गिलास पानी ही पीएं।
* बिना प्यास के भी घण्टे-घण्टे भर से पानी पीना चाहिए।
* तेज मिर्च-मसाले और गर्म प्रकृति वाला भोजन शराब, अण्डा, मांसाहार आदि का सेवन करने से पेशाब में रुकावट और जलन, अल्सर, एसिडिटी, हयपरएसिडिटी आदि बिमारियां उत्पन्न होती हैं।
* ग्रीष्म ऋतु में शीतल और तरावट वाला आहार ग्रहण करना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार मधुर रस युक्त स्निग्ध(चिकनाई युक्त), शीतल, तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
सुश्रुत संहिता के अनुसार-
    "शर्करा खण्ड दिग्धानि सुगन्धीनि हिमानि च।
      पानकानि  च  सेवेत् मन्थाश्चापि सशर्करान्।।
      भोजनं   च   हितं  शीतं   सघृतं  मधुरद्रवम्।
      श्रतेन  पयसा   रात्रो   शर्करा   मधुरेण   च।।"

      अर्थात् बर्फ से शीतल किये हुए मधुर और सुगन्धित पेय तथा जल व घृत युक्त सत्तू का सेवन करना चाहिए। भोजन शुद्ध, स्निग्ध/ घृत और मधुर रस युक्त करना चाहिए और रात को सोते वक्त उबाल कर ठण्डा किया हुआ मीठा(शहद युक्त) दूध पीना चाहिए।